भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देखेगा कौन ? / शंभुनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंभुनाथ सिंह }} {{KKCatGeet}} <poem> :::बगिया में नाचेगा मोर, :::द...)
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
:::आँखड़ियों से झरते लोर,
 
:::आँखड़ियों से झरते लोर,
 
:::देखेगा कौन?
 
:::देखेगा कौन?
बौने ढाकों का यह वन, लपटॊं के फूल,
+
बौने ढाकों का यह वन, लपटों के फूल,
 
पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल,
 
पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल,
 
:::बौराये आमों की ओर,
 
:::बौराये आमों की ओर,

15:58, 22 अगस्त 2009 का अवतरण

बगिया में नाचेगा मोर,
देखेगा कौन?
तुम बिन ओ मेरे चितचोर,
देखेगा कौन?
नदिया का यह नीला जल, रेतीला घाट,
झाऊ की झुरमुट के बीच, यह सूनी बाट,
रह-रह कर उठती हिलकोर,
देखेगा कौन?
आँखड़ियों से झरते लोर,
देखेगा कौन?
बौने ढाकों का यह वन, लपटों के फूल,
पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल,
बौराये आमों की ओर,
देखेगा कौन?
पाथर-सा ले हिया कठोर,
देखेगा कौन?
नाचती हुई फुल-सुंघनी, बनतीतर शोख,
घास पर सोन-चिरैया, डाल पर महोख,
मैना की यह पतली ठोर,
देखेगा कौन?
कलंगी वाले ये कठफोर,
देखेगा कौन?
आसमान की ऐंठन-सी धुएँ की लकीर,
ओर-छोर नापती हुई, जलती शहतीर,
छू-छूकर सांझ और भोर,
देखेगा कौन?
दुखती यह देह पोर-पोर,
देखेगा कौन?