भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लौटकर नहीं आऊँगा / केशव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=अलगाव / केशव }} {{KKCatKavita}} <poem>जब तुम मुझे न...)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:15, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जब तुम मुझे नहीं करना चाहोगी
और प्यार
चुपचाप उठकर चली जाओगी
करीब से
मुझे लगेगा
कि तुमने अक्सर कहा है जो
प्यार के धधकते क्षणों में
वह सब था मात्र भूख
तुम्हारे अंतस में
सपने की तरह जागा हुआ
आँखा खुलते ही जो
उतर गया विस्मृति के गह्वर में

पर फिर जब सपना करवट लेगा
तुम्हारे अन्दर
और रात कस लेगी तुम्हें
अपनी अजनबी गुंजलक में
तब तुम पुकारोगी-जान,प्राण
पर तुम्हारी पुकार नहीं पहुँचेगी
मेरे कानो तक
बीत चुका होगा अवसर
मैं लौट कर नहीं आऊँगा
और तुम रात की कोख में
छटपटाती रहोगी
जन्म के लिए