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"सूरज डूब गया बल्ली भर / नरेन्द्र शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | सूरज डूब गया बल्ली भर- | + | ::सूरज डूब गया बल्ली भर- |
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− | एक बाँस भर उठ आया है- | + | ::एक बाँस भर उठ आया है- |
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− | अगणित | + | अगणित उंगली खोल, ताड के पत्र, चांदनी में डोले, |
ऐसा लगा, ताड का जंगल सोया रजत-छत्र खोले | ऐसा लगा, ताड का जंगल सोया रजत-छत्र खोले | ||
− | कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ | + | ::कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ |
− | हो आया, आज एक पल में। | + | ::हो आया, आज एक पल में। |
बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता, | बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता, | ||
बनता मन का मुकुर सिंधु, जो गरज-गरज कर कुछ कहता, | बनता मन का मुकुर सिंधु, जो गरज-गरज कर कुछ कहता, | ||
− | शशि बनकर मन चढा गगन पर, | + | ::शशि बनकर मन चढा गगन पर, |
− | रवि बन छिपा सिंधु तल में। | + | ::रवि बन छिपा सिंधु तल में। |
− | परिक्रमा कर रहा किसी की, मन बन | + | परिक्रमा कर रहा किसी की, मन बन चांद और सूरज, |
सिंधु किसी का हृदय-दोल है, देह किसी की है भू-रज | सिंधु किसी का हृदय-दोल है, देह किसी की है भू-रज | ||
− | मन को खेल खिलाता कोई, | + | ::मन को खेल खिलाता कोई, |
− | निशि दिन के छाया-छल में। | + | ::निशि दिन के छाया-छल में। |
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17:57, 22 अगस्त 2009 का अवतरण
सूरज डूब गया बल्ली भर-
सागर के अथाह जल में।
एक बाँस भर उठ आया है-
चांद, ताड के जंगल में।
अगणित उंगली खोल, ताड के पत्र, चांदनी में डोले,
ऐसा लगा, ताड का जंगल सोया रजत-छत्र खोले
कौन कहे, मन कहाँ-कहाँ
हो आया, आज एक पल में।
बनता मन का मुकुर इंदु, जो मौन गगन में ही रहता,
बनता मन का मुकुर सिंधु, जो गरज-गरज कर कुछ कहता,
शशि बनकर मन चढा गगन पर,
रवि बन छिपा सिंधु तल में।
परिक्रमा कर रहा किसी की, मन बन चांद और सूरज,
सिंधु किसी का हृदय-दोल है, देह किसी की है भू-रज
मन को खेल खिलाता कोई,
निशि दिन के छाया-छल में।