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"उल्टी करती मज़दूरन / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर

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01:17, 23 अगस्त 2009 का अवतरण

कोई नहीं बिठाता।

कोई नहीं बिठाता अपने साथ
बस की सभी सवारियाँ
कहतीं हट हट!
खड़ी हो जा दरवाज़े में।

दरवाज़े की खिड़की से
चालती बस में मुँह बाहर निकाल
करती है उल्टी
मैली मज़दूरन।

उल्टी का राज़
जानता है
परेशान खड़ा पति।

सफ़र र्में बस लगती है गरीब को
अमीर सोये रहते आराम से
औरत को उल्टी, कभी होती खुशखबरी
कभी बहुत ही दुखखबरी।