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"साजिश के तहत / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=अलगाव / केशव }} {{KKCatKavita}} <poem>आप चलते हुए ग...)
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01:22, 23 अगस्त 2009 का अवतरण

आप चलते हुए गिर जाओ
ठोकर खाकर
बुरा तो लगता है
अच्छा लगता है
जब उठ कर चलने लगो।

अच्छा नहीं लगता
साजिश के तहत गिराया जाना।

आप न हों शामिल
किसी समारोह में
अच्छा लगता है
नहीं लगता
शामिल न किया जाना
जानबूझ कर।

अच्छा लगता
हँसना मुस्कुराना
नहीं लगता
हँसना मुसकराना
नहीं लगता
जब कोई हँसे बस देख कर।
और भी बुरा लगता
आप शामिल हों हँसी-खुशी में
आप नाचें गाएं या मौज मनाएं
पता चले बाद में
यह सब था तहत
एक साजिश के।