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"भीतर का सच / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर
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बाहर नहीं आता
भीतर का सच
बहुत कठिन है
सच-सच कहना
जैसे कठिन है
सब कुछ सहना
गुनगुनाते भी रहना
सिसकना और
मुस्कुराते भी रहना
जमा हुआ दिखना
बहते भी रहना
चुप रहना
कहते हुए भी रहना
संग-संग रहना और
दूर-दूर रहना।
मन ही मन
कई कुछ कहना
बाहर से बस
चुपचाप रहना।