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"कफ़न में सिला ख़त ...... / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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तेरे आँगन की मिट्टी से
 
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साथ अपने
 
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अल्फाज़ हैं मेरे पास
 
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खामोशी
 
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कफ़न में सिला ख़त
 
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लायी है ...............
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तेरे रहम
 
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अब रूह कहीं
 
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तन्हाई अंधेरों का अर्थ
 
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चुरा लायी है ..............
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दरख्तों ने की है
 
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झांझर भी सिसकती है
 
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पैरों में यहाँ
 
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उम्मीद जले कपडों में
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मुस्कुरायी है ............
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मुस्कुराई  है ............
  
 
रात ने तलाक
 
रात ने तलाक

10:39, 23 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

तेरे आँगन की मिट्टी से
उड़कर
जो हवा आई है
साथ अपने
कई सवालात लाई है
अब न
अल्फाज़ हैं मेरे पास
न आवाज़ है
खामोशी
कफ़न में सिला ख़त
लाई है ...............

तेरे रहम
नोचते हैं जिस्म मेरा
तेरी दुआ
आसमाँ चीरती है
देह से बिछड़ गई है
अब रूह कहीं
तन्हाई अंधेरों का अर्थ
चुरा लाई है ..............

दरख्तों ने की है
मक्कारी किसी फूल से
कैद में जिस्म की
परछाई है
झांझर भी सिसकती है
पैरों में यहाँ
उम्मीद जले कपड़ों में
मुस्कुराई है ............

रात ने तलाक
दे दिया है सांसों को
बदन में इक ज़ंजीर सी
उतर आई है
वह देख सामने
मरी पड़ी है कोई औरत
शायद वह भी किसी हकीर की
परछाई है ................!!