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"वो खुद सरसे क़दम तक डूबे जाते हैं पसीने में / सफ़ी लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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23:13, 23 अगस्त 2009 के समय का अवतरण


वो खुद सर से क़दम तक डूब जाते हैं पसीने में।
मेरी महफ़िल में जो उनको, पशेमां देख लेते हैं॥

‘सफ़ी’ रहते हैं जानो-दिल फ़िदा करने पै आमादा।
मगर उस वक्त जब इन्साँ को इन्साँ देख लेते हैं॥