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"ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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23:42, 23 अगस्त 2009 का अवतरण
ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें
मिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।
इस कायनाते-ग़म की फ़सुर्दा फ़ज़ाओं में
बिखरा गये है आ के वो कुछ मुस्कुराहटें।
ऐ जिस्मे-नाज़नीने-निगारे-नज़रनवाज़
शुब्हे-शबे-विसाल तेरी मलगजाहटें।
पड़ती है आसमाने-मुहब्बत प' छूट सी
बल-बे-जबीने-नाज़ तेरी जगमगाहटें।
चलती जब नसीमे-ख़याले-ख़रामे-नाज़
सुनता हूँ दामनों की तेरे सरसराहटें।
चश्मे -सियह तबस्सुमे-पिनहाँ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।