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नहीं बाँटूंगा
 
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केवल घास नहीं काटूंगा
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::निम्बू जैसा ही निचोड़ कर
 
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::पिया हमारा ख़ून
 
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::मज़हब के मज़मून
 
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बाँटूंगा हर ज़ख़्म
 
बाँटूंगा हर ज़ख़्म
फ़कत अहसास नहीं बाँटूंगा
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बाँटूंगा अंधियारा
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महज प्रकाश नहीं बाँटूंगा।
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::फूलों की चमड़ि उदार
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बदलूंगा भूगोल
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सिर्फ़ इतिहास नहीं बाँटूंगा
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हवा उन्चास नहीं बाँटूंगा
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काटूंगा गर्दन भी
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केवल घास नहीं काटूंगा।
 
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17:02, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

भूख बँटे
पर, जिजीविषा की प्यास
नहीं बाँटूंगा
गर्दन भी काटूंगा
केवल घास नहीं काटूंगा।
निम्बू जैसा ही निचोड़ कर
पिया हमारा ख़ून
नफ़रत की भाषा में लिखकर
मज़हब के मज़मून
बाँटूंगा हर ज़ख़्म
फ़कत अहसास नहीं बाँटूंगा।
उपजाऊ धरती पर
उसने ही खींचा मेड़
और उसी के कब्ज़े में है
जंगल का हर पेड़
बाँटूंगा अंधियारा
महज प्रकाश नहीं बाँटूंगा।
फूलों की चमड़ि उदार
तितली की काटी पाँख
चालाकी से छीनी है
उसने कुणाल की आँख
बदलूंगा भूगोल
सिर्फ़ इतिहास नहीं बाँटूंगा
अगर नीम के पत्तों का
तीखापन
जाए जाग
टैंक, मिसाइल, बम को
लीलेगी भूसी की आग
गोलबंद हो रही
हवा उन्चास नहीं बाँटूंगा
काटूंगा गर्दन भी
केवल घास नहीं काटूंगा।