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"उसने मेरे बेगानेपन को ही /नचिकेता" के अवतरणों में अंतर
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उसने मेरे | उसने मेरे | ||
बेगानेपन को ही | बेगानेपन को ही | ||
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दूध मुँहे पाड़े को | दूध मुँहे पाड़े को | ||
माँ से दूर खदेड़ दिया | माँ से दूर खदेड़ दिया | ||
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उभर रहे | उभर रहे | ||
स्वेटर का पूरा ऊन | स्वेटर का पूरा ऊन | ||
उधेड़ दिया | उधेड़ दिया | ||
| − | :हरियाली केलिए | + | ::हरियाली केलिए |
| − | :पेड़ के | + | ::पेड़ के |
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| − | :बड़े प्यार से पास बुलाकर | + | ::बड़े प्यार से पास बुलाकर |
| − | :जड़े कई चाँटे | + | ::जड़े कई चाँटे |
उपजाऊ धरती के | उपजाऊ धरती के | ||
बँटवारे का | बँटवारे का | ||
मेड़ दिया | मेड़ दिया | ||
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17:04, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
उसने मेरे
बेगानेपन को ही
छेड़ दिया
घनी उमस में
कभी न उसने
पंखा हाँका है
लसिया गए भात को
देसी घी से छौंका है
दूध मुँहे पाड़े को
माँ से दूर खदेड़ दिया
उसने
नागफनी के जंगल में
कीकर बोया
ख़ुशबू नहीं, चुभन काँटों की
मंज़िल हो गोया
उभर रहे
स्वेटर का पूरा ऊन
उधेड़ दिया
हरियाली केलिए
पेड़ के
हरे तने काटे
बड़े प्यार से पास बुलाकर
जड़े कई चाँटे
उपजाऊ धरती के
बँटवारे का
मेड़ दिया
