भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मृदु संगीत कला का / नचिकेता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=नचिकेता | |रचनाकार=नचिकेता | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNavgeet}} | |
17:56, 24 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
जब-जब मैंने
तेरे मन के अंदर
झाँका है
वहाँ मिला है मुझे
प्यार का पसरा सहज उजास
हर मौसम में खिलनेवाला
टुहटुह लाल पलास
गूंज रहा
कण-कण में मृदु संगीत
कला का है
वहाँ मिली
बच्चों की जिद, कठुआई किलकारी
घुटन, अवसाद, गहन-चिंतन
बदहाली दुश्वारी
खाली पेट
मगर होंठों पर लिखा न
फाका है
मेरी खातिर
रची-बसी हर जगह दुआएँ हैं
श्रम की थकन मिटानेवाली
नर्म हवाएँ हैं
मुझे लगा
यह ही सच्चा अहसास
खुदा का है