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सोचिए | सोचिए |
18:05, 24 अगस्त 2009 का अवतरण
संगीत नीरव सोचिए क्यों इस नदी में बह रहा पानी नहीं अब
इस नदी में सिर्फ बालू-रेत ही हैं, जल नहीं है सीप, घोंघे, केकड़े, पर हो रहे विह्वल नहीं हैं मछलियों को तैरने से भी रहा कोई न मतलब
इस नदी में जल कभी पीने नहीं आते पखेरु दूर से ही नमन कर लेते हकासे ढोर-लेरु इस नदी को बांधने की योजना अब है असंभव
गांव घर, सीवान का कोई पता देती न यह भी एक जैसी हो गयी है सांझ रातें, दिन, सुबह भी हो चुका है इस नदी के तटों का संगीत नीरव