भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चौकियाँ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=परिदृश्य के भीतर / कुमार मुक...)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
जब खच्‍चरों और गदहों पर
 
जब खच्‍चरों और गदहों पर
 +
 
अँटी नहीं होगी  
 
अँटी नहीं होगी  
 +
 
खानाबदोश जिन्‍दगी
 
खानाबदोश जिन्‍दगी
 +
 
थोडा और सभ्‍य
 
थोडा और सभ्‍य
 +
 
थोडा और जड होने की
 
थोडा और जड होने की
 +
 
जब जरूरत महसूस हुई होगी
 
जब जरूरत महसूस हुई होगी
 +
 
तब मस्तिष्‍क के तहखानों से
 
तब मस्तिष्‍क के तहखानों से
 +
 
बैलगाडियों के साथ-साथ
 
बैलगाडियों के साथ-साथ
 +
 
निकली होंगी चौकियाँ भी
 
निकली होंगी चौकियाँ भी
 +
  
 
शायद उस काल भी थे देवता
 
शायद उस काल भी थे देवता
 +
 
जो चलते थे पुष्‍पकों से
 
जो चलते थे पुष्‍पकों से
 +
 
या मंत्रों से
 
या मंत्रों से
 +
 
जो आज भी जा रहे हैं
 
जो आज भी जा रहे हैं
 +
 
चॉंद और मंगल की ओर
 
चॉंद और मंगल की ओर
 +
 
तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी
 
तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी
 +
 
सभ्‍यता का बोझ ढोतीं
 
सभ्‍यता का बोझ ढोतीं
 +
  
 
जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्‍त्र  
 
जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्‍त्र  
 +
 
हिरोशिमा पर
 
हिरोशिमा पर
 +
 
सभ्‍यता का भार हल्‍का कर रहे थे
 
सभ्‍यता का भार हल्‍का कर रहे थे
 +
 
एक घुमक्‍कड खच्‍चरों पर अपनी सभ्‍यता लादे
 
एक घुमक्‍कड खच्‍चरों पर अपनी सभ्‍यता लादे
 +
 
तिब्‍बत से लद्दाख का रास्‍ता तलाश रहा था
 
तिब्‍बत से लद्दाख का रास्‍ता तलाश रहा था
 +
 
उसी समय  
 
उसी समय  
 +
 
कलकत्‍ते में लोग
 
कलकत्‍ते में लोग
 +
 
चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे
 
चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे
 +
 
चॉंद की ओर जाने का  
 
चॉंद की ओर जाने का  
 +
 
यही ढंग था उनका।
 
यही ढंग था उनका।

22:32, 25 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

जब खच्‍चरों और गदहों पर

अँटी नहीं होगी

खानाबदोश जिन्‍दगी

थोडा और सभ्‍य

थोडा और जड होने की

जब जरूरत महसूस हुई होगी

तब मस्तिष्‍क के तहखानों से

बैलगाडियों के साथ-साथ

निकली होंगी चौकियाँ भी


शायद उस काल भी थे देवता

जो चलते थे पुष्‍पकों से

या मंत्रों से

जो आज भी जा रहे हैं

चॉंद और मंगल की ओर

तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी

सभ्‍यता का बोझ ढोतीं


जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्‍त्र

हिरोशिमा पर

सभ्‍यता का भार हल्‍का कर रहे थे

एक घुमक्‍कड खच्‍चरों पर अपनी सभ्‍यता लादे

तिब्‍बत से लद्दाख का रास्‍ता तलाश रहा था

उसी समय

कलकत्‍ते में लोग

चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे

चॉंद की ओर जाने का

यही ढंग था उनका।