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"चौकियाँ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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निकली होंगी चौकियाँ भी | निकली होंगी चौकियाँ भी | ||
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शायद उस काल भी थे देवता | शायद उस काल भी थे देवता | ||
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जो चलते थे पुष्पकों से | जो चलते थे पुष्पकों से | ||
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या मंत्रों से | या मंत्रों से | ||
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जो आज भी जा रहे हैं | जो आज भी जा रहे हैं | ||
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चॉंद और मंगल की ओर | चॉंद और मंगल की ओर | ||
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तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी | तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी | ||
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सभ्यता का बोझ ढोतीं | सभ्यता का बोझ ढोतीं | ||
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जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्त्र | जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्त्र | ||
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हिरोशिमा पर | हिरोशिमा पर | ||
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सभ्यता का भार हल्का कर रहे थे | सभ्यता का भार हल्का कर रहे थे | ||
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एक घुमक्कड खच्चरों पर अपनी सभ्यता लादे | एक घुमक्कड खच्चरों पर अपनी सभ्यता लादे | ||
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तिब्बत से लद्दाख का रास्ता तलाश रहा था | तिब्बत से लद्दाख का रास्ता तलाश रहा था | ||
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उसी समय | उसी समय | ||
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कलकत्ते में लोग | कलकत्ते में लोग | ||
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चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे | चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे | ||
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चॉंद की ओर जाने का | चॉंद की ओर जाने का | ||
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यही ढंग था उनका। | यही ढंग था उनका। |
22:32, 25 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
जब खच्चरों और गदहों पर
अँटी नहीं होगी
खानाबदोश जिन्दगी
थोडा और सभ्य
थोडा और जड होने की
जब जरूरत महसूस हुई होगी
तब मस्तिष्क के तहखानों से
बैलगाडियों के साथ-साथ
निकली होंगी चौकियाँ भी
शायद उस काल भी थे देवता
जो चलते थे पुष्पकों से
या मंत्रों से
जो आज भी जा रहे हैं
चॉंद और मंगल की ओर
तब से चली आ रही हैं बैलगाडियाँ भी
सभ्यता का बोझ ढोतीं
जब बी-29 पर लदे परमाणु अस्त्र
हिरोशिमा पर
सभ्यता का भार हल्का कर रहे थे
एक घुमक्कड खच्चरों पर अपनी सभ्यता लादे
तिब्बत से लद्दाख का रास्ता तलाश रहा था
उसी समय
कलकत्ते में लोग
चौकियों पर चौकियां जमा रहे थे
चॉंद की ओर जाने का
यही ढंग था उनका।