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"मेरे रक्‍त के आईने में / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर

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22:52, 25 अगस्त 2009 का अवतरण

मेरे रक्‍त के आईने में

खुद को सँवार रही है वह

यह सुहाग है उसका

इसे अचल होना चाहिए


जब कोई चंचल किरण

कँपाती है आईना

उसका वजूद हिलने लगता है

जिसे थामने की कोशिश में

वह घंघोल डालती है आईना

हिलता वजूद भी फिर

गायब होने लगता है जैसे।