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"क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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− | क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक | + | क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हैं पलकें |
क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए | क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए | ||
− | बरसात की इस रात में | + | बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद |
− | इक तेज़ छुरी है जो उतरती | + | इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए |
− | कुछ | + | कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें |
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए | दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए | ||
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन | शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन | ||
− | रक्खा है अजब नाम | + | रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए |
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+ | हिज्र = जुदाई, नमनाक = नमी से भरी, बड़े पाए के = धुरंधर |
16:39, 26 अगस्त 2009 का अवतरण
क्यों तेरे ग़म-ए-हिज्र में नमनाक हैं पलकें
क्योंकि याद तेरी आते ही तारे निकल आए
बरसात की इस रात में ऐ दोस्त तेरी याद
इक तेज़ छुरी है जो उतरती चली जाए
कुछ ऐसी भी गुज़री हैं तेरे हिज्र में रातें
दिल दर्द से ख़ाली हो मगर नींद न आए
शायर हैं फ़िराक़ आप बड़े पाए के लेकिन
रक्खा है अजब नाम, कि जो रास न आए
हिज्र = जुदाई, नमनाक = नमी से भरी, बड़े पाए के = धुरंधर