"मै अर्जुन नहीं हूं / अशोक कुमार पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: अर्जुन नहीं हूं मैं भेद ही नहीं सका कभी चिडिया की दाहिनी आंख कारण...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=अशोक कुमार पाण्डेय | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | <poem> | ||
अर्जुन नहीं हूं मैं | अर्जुन नहीं हूं मैं | ||
भेद ही नहीं सका कभी | भेद ही नहीं सका कभी | ||
पंक्ति 36: | पंक्ति 42: | ||
नहीं देना पडा | नहीं देना पडा | ||
किसी एकलव्य को अंगूठा। | किसी एकलव्य को अंगूठा। | ||
+ | </poem> |
00:50, 28 अगस्त 2009 का अवतरण
अर्जुन नहीं हूं मैं
भेद ही नहीं सका कभी
चिडिया की दाहिनी आंख
कारणों की मत पूछिये
अव्वल तो यह
कि जान गया था पहले ही
मिट्टी की चिडिया चाहे जितनी भेद लूं
घूमती मछ्ली पर उठे धनुष से
छीन लिया जायेगा तूणीर
फिर यह कि रुचा ही नहीं
चिडिया जैसी निरीह का शिकार
भले मिट्टी का हो
मै मारना चाहूंगा किसी आदमखोर को
गुरु चाहते थे
कि कुछ न देखूं उस दाहिनी आंख के सिवा
और मेरी नज़र हटती ही नहीं थी
बाईं आंख की कातरता से
मैं तो पेडों से विलगते पत्तों को देखकर भी
हो जाता था दुखी
मुझे कोई रुचि नहीं थी दोस्तों से आगे निकल जाने की
भाई तो फिर भाई थे
मै तो सजा कर रख देना चाहता था
उस मिट्टी की चिडिया को पिंजरे में
कि आसमान में देख सकूं एक और परिंदा
मै उसकी आंखों में भर देना चाहता था उमंग
स्वरों में लय, परों में उडान
और अब भी शर्मिंदा नहीं हूं
अपनी असफलता से
बल्कि ख़ुश हूं
कि कम से कम मेरी वज़ह से
नहीं देना पडा
किसी एकलव्य को अंगूठा।