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"मै अर्जुन नहीं हूं / अशोक कुमार पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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मै मारना चाहूंगा किसी आदमखोर को | मै मारना चाहूंगा किसी आदमखोर को | ||
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बाईं आंख की कातरता से | बाईं आंख की कातरता से | ||
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मुझे कोई रुचि नहीं थी दोस्तों से आगे निकल जाने की | मुझे कोई रुचि नहीं थी दोस्तों से आगे निकल जाने की | ||
भाई तो फिर भाई थे | भाई तो फिर भाई थे | ||
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स्वरों में लय, परों में उडान | स्वरों में लय, परों में उडान | ||
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कि कम से कम मेरी वज़ह से | कि कम से कम मेरी वज़ह से | ||
नहीं देना पडा | नहीं देना पडा | ||
किसी एकलव्य को अंगूठा। | किसी एकलव्य को अंगूठा। | ||
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11:27, 28 अगस्त 2009 का अवतरण
अर्जुन नहीं हूं मैं
भेद ही नहीं सका कभी
चिडिया की दाहिनी आंख
कारणों की मत पूछिये
अव्वल तो यह
कि जान गया था पहले ही
मिट्टी की चिडिया चाहे जितनी भेद लूं
घूमती मछ्ली पर उठे धनुष से
छीन लिया जायेगा तूणीर
फिर यह कि रुचा ही नहीं
चिडिया जैसी निरीह का शिकार
भले मिट्टी का हो
मै मारना चाहूंगा किसी आदमखोर को
मेरी नज़र हटती ही नहीं थी
बाईं आंख की कातरता से
मुझे कोई रुचि नहीं थी दोस्तों से आगे निकल जाने की
भाई तो फिर भाई थे
मै तो सजा कर रख देना चाहता था
उस मिट्टी की चिडिया को पिंजरे में
कि आसमान में देख सकूं एक और परिंदा
मै उसकी आंखों में भर देना चाहता था उमंग
स्वरों में लय, परों में उडान
और अब भी ख़ुश हूं
कि कम से कम मेरी वज़ह से
नहीं देना पडा
किसी एकलव्य को अंगूठा।