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"बचपन विहीन अधिकार / सत्यपाल सहगल" के अवतरणों में अंतर

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अधिकारी का पता नहीं चलता
कि उसका कभी बचपन था
और ऊँचे अधिकारी का बचपन
लगभग बचपन खत्म हो जाता है
शेष जो बचा रहता है
वह है एक गुलाम चेहरा
देश के सबसे अच्छे ब्लेड से शेव किया
गुलाम चेहरा
कितना भद्र है एक गुलाम चेहरे का रूआब
कितना प्रामाणिक
यह रात को नी6द में घुसते किसी आम हिन्दुस्तानी से पूछें
देखें साँच को आँच नहीं
कर्मयोग पर उसका व्याख़्यान
सुना गया कितने ध्यान से
विद्यालय के दीक्षांत समारोह में
वह उसकी आत्मा के धुलने का क्षण था
एक सभ्रांत,महिमामंडित और राष्ट्रीय गदगद क्षण।