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"घाटी के ऊपर की रात / सत्यपाल सहगल" के अवतरणों में अंतर
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18:19, 28 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
यदि मैं चला चलूं इसके बेच में से गुज़रता हुआ
क्या यह एक्नदी है
जिसमें से हैं चुल्लू भर जल पी लूँ
क्या इस पर बर्फ जमी है
और मैं फिसलता चला जाऊँगा मैदान की रात में
इससे बातें करूँ
या इसे सुनूँ
यह इतनी अच्छी ओर अलग रात है
मैं इसका क्या करूँ
मैं इसका कुछ तो करूँ
क्या इसे तकिया बना कर सो जाऊँ