"दीदनी है नरगिसे - ख़ामोश का तर्ज़े - ख़िताब / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
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चेहरा-ए-अफ़ाक७ पर कुछ आ चली है आबो-ताब। | चेहरा-ए-अफ़ाक७ पर कुछ आ चली है आबो-ताब। | ||
− | इस क़दर रश्क़, ऐ तलबगाराने-सामाने निशात८ | + | इस क़दर रश्क़, ऐ तलबगाराने-सामाने-निशात८ |
इश्क़ के पास इक दिले-पुरसोज़, इक चश्मे-पुरआब९। | इश्क़ के पास इक दिले-पुरसोज़, इक चश्मे-पुरआब९। | ||
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दिल की हर धड़कन में सद ज़ीरो-बमे-चंगो-रबाब। | दिल की हर धड़कन में सद ज़ीरो-बमे-चंगो-रबाब। | ||
+ | आ रहे हैं गुलसिताँ में ख़ैरो-बरक़त के पयाम | ||
+ | है सदा बादे-सबा की या दुआ ए - मुस्तजाब। | ||
+ | मुर्ग़ है उस दश्त का कोई न मारे पर जहाँ | ||
+ | एक ही पंजे के हैं, ऐ चर्ख़ शाहीनो-उक़ाब। | ||
+ | हम समन्दर मथ के लाये गौहरे-राजे-दवाम१० | ||
+ | दास्तानें मिल्लतों११ की हैं जहाँ नक्शे-बरआब१२। | ||
+ | गिर गयीं मेरी नज़र से आज अपनी सब दुआयें | ||
+ | वाँ गया भी मैं तो उनकी गालियों का क्या जवाब। | ||
+ | पूँछता है मुझसे तू ऐ शख़्स क्या हूँ, कौन हूँ | ||
+ | मैं वही रुसवाये-आलम, शायरों में इन्तेख़ाब। | ||
+ | ऐ फ़िराक़ आफ़ाक़ है कोई तिलिस्म अन्दर तिलिस्म | ||
+ | है हर इक ख़ाब हक़ीक़त हर हकी़क़त एक ख़ाब। | ||
− | + | शब्दार्थ: | |
− | + | १- देखने योग्य, २- ईश्वरेच्छा, ३- तथ्य, ५- रोष, ६-दुनिया, ७- स्थिरता, ८- संसार के मुख पर, ९- विलास सामग्री के इच्छुक, १०- आँसुओं से भरी आँख, ११- अमरत्व के मर्म का मोती, १२- राष्ट्रों १३- पानी पर अंकित रेखायें, जिनकी कोई हैसियत न हो। | |
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23:35, 28 अगस्त 2009 का अवतरण
दीदनी१ है नरगिसे - ख़ामोश का तर्ज़े - ख़िताब
गह सवाल अन्दर सवालो - गह जवाब अन्दर जवाब।
जौहरे - शमशीर क़ातिल हैं कि हैं रगहा - ए - नाब
साकिया तलवार खिचती है कि खिचती है शराब।
इश्क़ के आगोश में बस इक दिले-ख़ानाख़राब
हुस्न के पहलू में सदहा आफ़्ताबो - माहताब।
सरवरे- कुफ़्फ़ार है इश्क़ और अमीरुल-मोमनीं
काबा-ओ-बुतख़ाना औक़ाफ़े - दिले - आलीजनाब।
राज़ के सेगे में रक्खा था मशीअत२ ने जिन्हें
वो हक़ायक़३ हो गये मेरी ग़ज़ल में बेनक़ाब।
एक गँजे-बेबहा है, अहले-दिल को उनकी याद
तेरे जौरे - बे नहायत, तेरे जौरे - बेहिसाब।
आदमीयों से भरी है, ये भरी दुनिया मगर
आदमी को आदमी होता नहीं है दस्तयाब।
साथ ग़ुस्से में न छोड़ा शोख़ियों ने हुस्न का
बरहमी की हर अदा में मुस्कुराता है इताब४।
इश्क़ की सरमस्तियों५ का क्या हो अन्दाजा कि इश्क़
सद शराब, अन्दर शराब, अन्दर शराब, अन्दर शराब।
इश्क़ पर ऐ दिल कोई क्योंकर लगा सकता है हुक़्म
हम सवाब अन्दर सबाबो - हम अज़ाब अन्दर अज़ाब।
नाम रह जाता है वरना दह्र५ में किसको सबात६
आज दुनिया में कहाँ हैं रुस्तमों - अफ़रासियाब।
रास आया दह्र को खू़ने - जिगर से सींचना
चेहरा-ए-अफ़ाक७ पर कुछ आ चली है आबो-ताब।
इस क़दर रश्क़, ऐ तलबगाराने-सामाने-निशात८
इश्क़ के पास इक दिले-पुरसोज़, इक चश्मे-पुरआब९।
अब इसे कुछ और कहते हैं कि हुस्ने इत्तेफ़ाक
इक नज़र उड़ती हुई-सी कर गयी मुझको ख़राब।
एक सन्नाटा अटूट, अक्सर और अक्सर ऐ नदीम
दिल की हर धड़कन में सद ज़ीरो-बमे-चंगो-रबाब।
आ रहे हैं गुलसिताँ में ख़ैरो-बरक़त के पयाम
है सदा बादे-सबा की या दुआ ए - मुस्तजाब।
मुर्ग़ है उस दश्त का कोई न मारे पर जहाँ
एक ही पंजे के हैं, ऐ चर्ख़ शाहीनो-उक़ाब।
हम समन्दर मथ के लाये गौहरे-राजे-दवाम१०
दास्तानें मिल्लतों११ की हैं जहाँ नक्शे-बरआब१२।
गिर गयीं मेरी नज़र से आज अपनी सब दुआयें
वाँ गया भी मैं तो उनकी गालियों का क्या जवाब।
पूँछता है मुझसे तू ऐ शख़्स क्या हूँ, कौन हूँ
मैं वही रुसवाये-आलम, शायरों में इन्तेख़ाब।
ऐ फ़िराक़ आफ़ाक़ है कोई तिलिस्म अन्दर तिलिस्म
है हर इक ख़ाब हक़ीक़त हर हकी़क़त एक ख़ाब।
शब्दार्थ:
१- देखने योग्य, २- ईश्वरेच्छा, ३- तथ्य, ५- रोष, ६-दुनिया, ७- स्थिरता, ८- संसार के मुख पर, ९- विलास सामग्री के इच्छुक, १०- आँसुओं से भरी आँख, ११- अमरत्व के मर्म का मोती, १२- राष्ट्रों १३- पानी पर अंकित रेखायें, जिनकी कोई हैसियत न हो।