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"कभी थकन के असर का पता नहीं रहता / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर

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20:35, 29 अगस्त 2009 का अवतरण

  

कभी थकन के असर का पता नहीं चलता
वो साथ हो तो सफ़र का पता नहीं चलता

वही हुआ कि मैं आँखों में उसकी डूब गया
वो कह रहा था भवंर का पता नहीं चलता

उलझ के रह गया सैलाब कुर्रए दिल से
नहीं तो दीदा - ए - तर का पता नहीं चलता

उसे भी खिड़कियाँ खोले जमाना बीत गया
मुझे भी शामो सहर का पता नहीं चलता

ये मंसबो का इलाका है इसलिए शायद
किसी के नाम से घर का पता नहीं चलता