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"नज़्म उलझी हुई है सीने में / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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बस तेरा नाम ही मुकम्मल है <br> | बस तेरा नाम ही मुकम्मल है <br> | ||
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी <br><br> | इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी <br><br> |
15:11, 11 अप्रैल 2008 का अवतरण
रचनाकार: गुलज़ार
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नज़्म उलझी हुई है सीने में
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं
कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी