भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खुमार बाराबंकवी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हुस्न जब मेह...)
 
छो (हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए / खुमार बाराबंकवी का नाम बदलकर हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए )
(कोई अंतर नहीं)

19:06, 30 अगस्त 2009 का अवतरण

हुस्न जब मेहरबान हो तो क्या कीजिए
इश्क की मगफिरत<ref>माफ़ी</ref> की दुआ कीजिए

इस सलीके से उनसे गिला कीजिए
जब गिला कीजिए, हंस दिया कीजिए

दूसरों पर अगर तबसरा<ref>बुराई</ref> कीजिए
सामने आईना रख लिया कीजिए

आप सुख से हैं तर्क-ऐ-ताल्लुक<ref>अलग होना</ref> के बाद
इतनी जल्दी न ये फैसला कीजिए

कोई धोखा न खा जाए मेरी तरह
ऐसे खुल के न सबसे मिला कीजिए

शब्दार्थ
<references/>