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"क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर
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19:18, 30 अगस्त 2009 का अवतरण
क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं
इश्क मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
गम छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
बेख़बर तूने आईना देखा नहीं
दो परिंदे उड़े आँख नम हो गई
आज समझा के मैं तुझको भूला नहीं
अहल-ऐ-मंजिल अभी से न मुझ पर हँसो
पाँव टूटे हैं दिल मेरा टूटा नहीं
तरक-ऐ-मय को अभी दिन ही कितने हुए
और कुछ कहा मय को जाहिद तो अच्छा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
मुझ को नदामत है तुझ से शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
तुझ को रहमत पर शायद भरोसा नहीं