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"बह नहीं जाना लहर में / वीरेंद्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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यह मधुर मधुवंत बेला
 
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मन नहीं है अब अकेला
 
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स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका
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सांझ रंगारंग है ये
 
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मुस्कुराता अंग है ये
 
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बिन बुलाए आ गया है मेहमान यौवन का
 
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रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का
 
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प्यार के पट खोलता है
 
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टूटकर बन जाए निर्भर प्राण पाहन का
 
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10:54, 31 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

यह मधुर मधुवंत बेला
मन नहीं है अब अकेला
स्वप्न का संगीत कंगन की तरह खनका

सांझ रंगारंग है ये
मुस्कुराता अंग है ये
बिन बुलाए आ गया है मेहमान यौवन का

प्यार कहता है डगर में
बह नहीं जाना लहर में
रूप कहता झूम जा, त्यौहार है तन का

घट छलककर डोलता है
प्यार के पट खोलता है
टूटकर बन जाए निर्भर प्राण पाहन का