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"आस्था का दिशा-संकेत / वीरेंद्र मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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हर किरन को चरागाह की | हर किरन को चरागाह की | ||
रागिनी पर बडा गर्व है | रागिनी पर बडा गर्व है | ||
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एक गरिमा भरो गीत में | एक गरिमा भरो गीत में | ||
सृष्टि हो जाए महिमामयी | सृष्टि हो जाए महिमामयी | ||
− | नेह की | + | नेह की बाँह पर सिर धरो |
आज के ये निमिष निर्णयी | आज के ये निमिष निर्णयी | ||
आंचलिक प्यास हो जो, कहो | आंचलिक प्यास हो जो, कहो | ||
− | साथ आओ, | + | साथ आओ, उमड़ कर बहो |
− | + | ज़िन्दगी की नयन-कोर में | |
डबडबाया समर्पण न दो। | डबडबाया समर्पण न दो। | ||
जो दिवस सूर्य से दीप्त हो | जो दिवस सूर्य से दीप्त हो | ||
− | चंद्रमा का नहीं वश | + | चंद्रमा का नहीं वश वहाँ |
− | जिस गगन पर | + | जिस गगन पर मढ़ी धूप हो |
− | व्यर्थ होती अमावस | + | व्यर्थ होती अमावस वहाँ |
गीत है जो, सुनो, झूम लो | गीत है जो, सुनो, झूम लो | ||
− | सिर्फ | + | सिर्फ मुखड़ा पढ़ो, चूम लो |
तैरने दो समय की नदी | तैरने दो समय की नदी | ||
डूबने का निमंत्रण न दो। | डूबने का निमंत्रण न दो। | ||
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11:01, 31 अगस्त 2009 के समय का अवतरण
आँख क्या कह रही है, सुनो-
अश्रु को एक दर्पण न दो।
और चाहे मुझे दान दो
एक टूटा हुआ मन न दो।
तुम जोड़ो शृंखला की कड़ी
धूप का यह घड़ी पर्व है
हर किरन को चरागाह की
रागिनी पर बडा गर्व है
जो कभी है घटित हो चुका
जो अतल में कहीं सो चुका
देवता को सृजन-द्वार पर
स्वप्न का वह विसर्जन न दो
एक गरिमा भरो गीत में
सृष्टि हो जाए महिमामयी
नेह की बाँह पर सिर धरो
आज के ये निमिष निर्णयी
आंचलिक प्यास हो जो, कहो
साथ आओ, उमड़ कर बहो
ज़िन्दगी की नयन-कोर में
डबडबाया समर्पण न दो।
जो दिवस सूर्य से दीप्त हो
चंद्रमा का नहीं वश वहाँ
जिस गगन पर मढ़ी धूप हो
व्यर्थ होती अमावस वहाँ
गीत है जो, सुनो, झूम लो
सिर्फ मुखड़ा पढ़ो, चूम लो
तैरने दो समय की नदी
डूबने का निमंत्रण न दो।