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"चांदनी छत पे चल रही होगी / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर
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18:43, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण
लेखक: दुष्यंत कुमार
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चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी
फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
वो बर्फ़-सी पिघल रही होगी
कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी
सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शम-सी जल रही होगी
तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी
जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी