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"बार-बार नहाएं / सुदर्शन वशिष्ठ" के अवतरणों में अंतर

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आदमी बनता है संवरता है
मैला होता है
नहाता है।

नहाना हो चाहे गुसल में, खुले में
दरिया में,चाहे गंगा में
गंदा होने के बाद नहाना
पवित्रा कहा है धर्म ग्रन्थों में

इसलिए पाप के बाद
बार बार नहाएँ
नहा धो कर पाप करें!