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"क्षणिकाएँ-1 / शमशाद इलाही अंसारी" के अवतरणों में अंतर

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तुझे कभी चैन न आए इतना बचैन कर दूंगा
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तुझे कभी चैन न आए इतना बेचैन कर दूंगा
 
तेरे बदन में अपने जिस्म का रेज़ा रेज़ा भर दूंगा,
 
तेरे बदन में अपने जिस्म का रेज़ा रेज़ा भर दूंगा,
 
मेरी नींदों को हवाओं में घोलने वाले
 
मेरी नींदों को हवाओं में घोलने वाले
 
तेरी रग़-रग़ में अपनी तड़प मैं छोड़ दूंगा।
 
तेरी रग़-रग़ में अपनी तड़प मैं छोड़ दूंगा।
 
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(रचनाकाल: 16.09.2002)
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मय्यतों के हुजूम में एक सवाल रखता हूँ
 
मय्यतों के हुजूम में एक सवाल रखता हूँ
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सदियों से पड़ा हूँ यहाँ बिना जुम्बिश के
 
सदियों से पड़ा हूँ यहाँ बिना जुम्बिश के
 
कोई फूँकेगा मुझमें साँसे ये आस रखता हूँ।
 
कोई फूँकेगा मुझमें साँसे ये आस रखता हूँ।
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(रचनाकाल: 18.07.2002)
  
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आज खा लेने दे जी भर कर
 
आज खा लेने दे जी भर कर
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मेरे पडौ़स में एक
 
मेरे पडौ़स में एक
 
खूबसूरत चारागर है।
 
खूबसूरत चारागर है।
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कभी उलझ गए कभी सुलझ गए
 
कभी उलझ गए कभी सुलझ गए
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औरों जैसे जीने के तरीके
 
औरों जैसे जीने के तरीके
 
सीखने से भी हमें न आए।
 
सीखने से भी हमें न आए।
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वो जो दिखने में बहुत परिशाँ से हैं
 
वो जो दिखने में बहुत परिशाँ से हैं
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मौहलत नहीं ज़रा उन्हें ख़ुद से मिलने की भी
 
मौहलत नहीं ज़रा उन्हें ख़ुद से मिलने की भी
 
ऐसे उलझे-उलझे से मेरे सरकार वो हैं।
 
ऐसे उलझे-उलझे से मेरे सरकार वो हैं।
 
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तेरी तस्वीर की ज़रुरत नहीं मुझको
 
तेरी तस्वीर की ज़रुरत नहीं मुझको
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फ़िज़ायें लाती हैं हर दम पैगाम तेरा
 
फ़िज़ायें लाती हैं हर दम पैगाम तेरा
 
तेरी खुशबू भी मुझे अब नज़र आती है।
 
तेरी खुशबू भी मुझे अब नज़र आती है।
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(रचनाकाल: 24.08.2002)
  
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सुलगते ख़्वाबों को दहकाए हुए रखना
 
सुलगते ख़्वाबों को दहकाए हुए रखना
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मुसाफ़िर हूँ अकेला इस लम्बे सफ़र में
 
मुसाफ़िर हूँ अकेला इस लम्बे सफ़र में
 
गर्म साँसों से रहगुज़र सजाए रखना।
 
गर्म साँसों से रहगुज़र सजाए रखना।
 
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(रचनाकाल: 14.09.2002)
'''रचनाकाल: 14.09.2002
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14:57, 1 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

1.

तुझे कभी चैन न आए इतना बेचैन कर दूंगा
तेरे बदन में अपने जिस्म का रेज़ा रेज़ा भर दूंगा,
मेरी नींदों को हवाओं में घोलने वाले
तेरी रग़-रग़ में अपनी तड़प मैं छोड़ दूंगा।
(रचनाकाल: 16.09.2002)
 
2.

मय्यतों के हुजूम में एक सवाल रखता हूँ
कभी ख़ुद से मुलाक़ात होगी ये ख़्याल रखता हूँ,
सदियों से पड़ा हूँ यहाँ बिना जुम्बिश के
कोई फूँकेगा मुझमें साँसे ये आस रखता हूँ।
(रचनाकाल: 18.07.2002)

3.

आज खा लेने दे जी भर कर
हो जाने दे बदहज़मी,
मेरे पडौ़स में एक
खूबसूरत चारागर है।
(रचनाकाल: 18.07.2002)

4.

कभी उलझ गए कभी सुलझ गए
कभी जाम से टकरा गए,
औरों जैसे जीने के तरीके
सीखने से भी हमें न आए।
(रचनाकाल: 21.07.2002)

5.

वो जो दिखने में बहुत परिशाँ से हैं
अपनी उल्फ़त से वो हैराँ से हैं,
मौहलत नहीं ज़रा उन्हें ख़ुद से मिलने की भी
ऐसे उलझे-उलझे से मेरे सरकार वो हैं।
(रचनाकाल: 31.08.2002}
 
6.

तेरी तस्वीर की ज़रुरत नहीं मुझको
तेरी सूरत मुझे हर सू नज़र आती है
फ़िज़ायें लाती हैं हर दम पैगाम तेरा
तेरी खुशबू भी मुझे अब नज़र आती है।
(रचनाकाल: 24.08.2002)

7.
 
सुलगते ख़्वाबों को दहकाए हुए रखना
जज़्बों की दिलकश इमारत बनाए रखना,
मुसाफ़िर हूँ अकेला इस लम्बे सफ़र में
गर्म साँसों से रहगुज़र सजाए रखना।
(रचनाकाल: 14.09.2002)