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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''मुसलमानसद्यःस्नाता<br>&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[देवी प्रसाद मिश्रअशोक वाजपेयी]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
कहते हैं वे विपत्ति की तरह आएपानीकहते हैं वे प्रदूषण की तरह फैलेछूता है उसेवे व्याधि थेउसकी त्वचा के उजास कोउसके अंगों की प्रभा को –
ब्राह्मण कहते थे वे मलेच्छ थेपानीढलकता है उसकीउपत्यकाओं शिखरों में से –
वे मुसलमान थेपानीउसे घेरता हैचूमता है
उन्होंने अपने घोड़े सिन्धु में उतारेपानी सकुचाताऔर पुकारते रहे हिन्दू! हिन्दू!! हिन्दू!!!लजातागरमाता हैपानी बावरा हो जाता है
बड़ी जाति को उन्होंने बड़ा नाम दियानदी का नाम दिया वे हर गहरी और अविरल नदी कोपार करना चाहते थे वे मुसलमान थे लेकिन वे भीयदि कबीर की समझदारी का सहारा लिया जाए तोहिन्दुओं की तरह पैदा होते थे उनके पास बड़ी-बड़ी कहानियाँ थींचलने कीठहरने कीपिटने की और मृत्यु की प्रतिपक्षी के ख़ून में घुटनों तकऔर अपने ख़ून में कन्धों तकवे डूबे होते थेउनकी मुट्ठियों में घोड़ों की लगामेंऔर म्यानों में सभ्यता के नक्शे होते थे न! मृत्यु के लिए नहींवे मृत्यु के लिए युद्ध नहीं लड़ते थे वे मुसलमान थे वे फ़ारस से आएतूरान से आएसमरकन्द, फ़रग़ना, सीस्तान से आएतुर्किस्तान से आए वे बहुत दूर से आएफिर भी वे पृथ्वी के ही कुछ हिस्सों से आएवे आए क्योंकि वे आ सकते थे वे मुसलमान थे वे मुसलमान थे कि या ख़ुदा उनकी शक्लेंआदमियों से मिलती थीं हूबहूहूबहू वे महत्त्वपूर्ण अप्रवासी थेक्योंकि उनके पास दुख की स्मृतियाँ थीं वे घोड़ों के साथ सोते थेऔर चट्टानों पर वीर्य बिख़ेर देते थेनिर्माण के लिए वे बेचैन थे वे मुसलमान थे  यदि सच को सच की तरह कहा जा सकता हैतो सच को सच की तरह सुना जाना चाहिए कि वे प्रायः इस तरह होते थेकि प्रायः पता ही नहीं लगता थाकि वे मुसलमान थे या नहीं थे वे मुसलमान थे वे न होते तो लखनऊ न होताआधा इलाहाबाद न होतामेहराबें न होतीं, गुम्बद न होताआदाब न होता मीर मक़दूम मोमिन न होतेशबाना न होती वे न होते तो उपमहाद्वीप के संगीत को सुननेवाला ख़ुसरो न होतावे न होते तो पूरे देश के गुस्से से बेचैन होनेवाला कबीर न होतावे न होते तो भारतीय उपमहाद्वीप के दुख को कहनेवाला ग़ालिब न होता मुसलमान न होते तो अट्ठारह सौ सत्तावन न होता वे थे तो चचा हसन थेवे थे तो पतंगों से रंगीन होते आसमान थेवे मुसलमान थे वे मुसलमान थे और हिन्दुस्तान में थेऔर उनके रिश्तेदार पाकिस्तान में थे वे सोचते थे कि काश वे एक बार पाकिस्तान जा सकतेवे सोचते थे और सोचकर डरते थे इमरान ख़ान को देखकर वे ख़ुश होते थेवे ख़ुश होते थे और ख़ुश होकर डरते थे वे जितना पी०ए०सी० के सिपाही से डरते थेउतना ही राम सेवे मुरादाबाद से डरते थेवे मेरठ से डरते थेवे भागलपुर से डरते थेवे अकड़ते थे लेकिन डरते थे वे पवित्र रंगों से डरते थेवे अपने मुसलमान होने से डरते थे वे फ़िलीस्तीनी नहीं थे लेकिन अपने घर को लेकर घर मेंदेश को लेकर देश मेंख़ुद को लेकर आश्वस्त नहीं थे वे उखड़ा-उखड़ा राग-द्वेष थेवे मुसलमान थे वे कपड़े बुनते थेवे कपड़े सिलते थेवे ताले बनाते थेवे बक्से बनाते थेउनके श्रम की आवाज़ें पूरे शहर में गूँजती रहती थीं वे शहर के बाहर रहते थे वे मुसलमान थे लेकिन दमिश्क उनका शहर नहीं थावे मुसलमान थे अरब का पैट्रोल उनका नहीं थावे दज़ला का नहीं यमुना का पानी पीते थे वे मुसलमान थे वे मुसलमान थे इसलिए बचके निकलते थेवे मुसलमान थे इसलिए कुछ कहते थे तो हिचकते थेदेश के ज़्यादातर अख़बार यह कहते थेकि मुसलमान के कारण ही कर्फ़्यू लगते हैंकर्फ़्यू लगते थे और एक के बाद दूसरे हादसे कीख़बरें आती थीं उनकी औरतेंबिना दहाड़ मारे पछाड़ें खाती थींबच्चे दीवारों से चिपके रहते थेवे मुसलमान थे वे मुसलमान थे इसलिएजंग लगे तालों की तरह वे खुलते नहीं थे वे अगर पाँच बार नमाज़ पढ़ते थेतो उससे कई गुना ज़्यादा बार सिर पटकते थेवे मुसलमान थे वे पूछना चाहते थे कि इस लालकिले का हम क्या करेंवे पूछना चाहते थे कि इस हुमायूं के मक़बरे का हम क्या करेंहम क्या करें इस मस्जिद का जिसका नामकुव्वत-उल-इस्लाम हैइस्लाम की ताक़त है अदरक की तरह वे बहुत कड़वे थेवे मुसलमान थे वे सोचते थे कि कहीं और चले जाएँलेकिन नहीं जा सकते थेवे सोचते थे यहीं रह जाएँतो नहीं रह सकते थेवे आधा जिबह बकरे की तरह तकलीफ़ के झटके महसूस करते थे वे मुसलमान थे इसलिएतूफ़ान मन में फँसे जहाज़ के मुसाफ़िरों की तरहएक दूसरे को भींचे रहते थे कुछ लोगों ने यह बहस चलाई थी किउन्हें फेंका जाए तो किस समुद्र में फेंका जाएबहस यह थीकि उन्हें धकेला जाएतो किस पहाड़ से धकेला जाए वे मुसलमान थे लेकिन वे चींटियाँ नहीं थेवे मुसलमान थे वे चूजे नहीं थे सावधान!सिन्धु उसके तन के दक्षिण मेंसैंकड़ों सालों की नागरिकता के बादमिट्टी के ढेले नहीं थे वे वे चट्टान और ऊन की तरह सच थेवे सिन्धु और हिन्दुकुश की तरह सच थेसच को जिस तरह भी समझा जा सकता होउस तरह वे सच थेवे सभ्यता का अनिवार्य नियम थेवे मुसलमान थे अफ़वाह नहीं थे वे मुसलमान थेवे मुसलमान थेवे मुसलमान थेअनेक संस्मरण हैं।
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