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सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,<br>
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,<br>
झगा जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२।<br><br>
भुरा बुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल चंचल प्याला,<br>
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,<br>
पटे कहाँ से, मधु मधशाला औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,<br>
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।<br><br>
बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,<br>
पी लेने पर तो उसके मुह मँह पर पड़ जाएगा ताला,<br>
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,<br>
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४।<br><br>
पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,<br>
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमलपरिमल-मधु-सुरिभत हाला,<br>
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,<br>
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!।३३।<br><br>
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