"मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | मैं कब कहता | + | मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?<br> |
− | + | काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,<br> | |
− | मैं कब कहता | + | मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?<br><br> |
− | मैं कब कहता | + | मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?<br> |
− | मैं कब कहता | + | मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?<br> |
− | मैं कब कहता | + | मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?<br> |
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?<br><br> | या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?<br><br> | ||
पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?<br> | पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?<br> | ||
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?<br> | नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?<br> | ||
− | मैं प्रस्तुत हूं चाहे मिट्टी जनपद की धूल बने-<br> | + | मैं प्रस्तुत हूं चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-<br> |
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !<br><br> | फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !<br><br> | ||
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मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने<br> | मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने<br> | ||
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !<br> | इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !<br> | ||
− | भव सारा | + | भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-<br> |
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने<br><br> | तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने<br><br> |
00:53, 9 सितम्बर 2009 का अवतरण
मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,
मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?
काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?
मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?
मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?
या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?
पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?
नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?
मैं प्रस्तुत हूं चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-
फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !
अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-
क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है ?
वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-
वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है
मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-
मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !
मैं कहता हूं, मैं बढ़ता हूं, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं
कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूं
मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने
इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !
भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-
तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने