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जैसे चींटियाँ लौटती हैं
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बिलों में
 
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कठफोड़वा लौटता है
 
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काठ के पास
 
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वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक  
 
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लाल आसमान में डैने पसारे हुए
 
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हवाई-अड्डे की ओर
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ओ मेरी भाषा
 
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मैं लौटता हूँ तुम में
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जब चुप रहते-रहते  
 
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अकड़ जाती है मेरी जीभ
 
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दुखने लगती है
 
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मेरी आत्मा
 
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'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से
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14:21, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

जैसे चींटियाँ लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
काठ के पास
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई-अड्डे की ओर

ओ मेरी भाषा
मैं लौटता हूँ तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
दुखने लगती है
मेरी आत्मा