भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इज़्ज़त से बज़्मे-गुल में रहा आशियाँ मेरा / साक़िब लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साक़िब लखनवी }} <poem> इज़्ज़त से बज़्मे-गुल में रहा...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:45, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
इज़्ज़त से बज़्मे-गुल में रहा आशियाँ मेरा।
तिनकों की क्या बिसात मगर नाम हो गया॥
इक मेरा आशियाँ है कि जलकर है बेनिशाँ।
इक तूर है कि जब से जला नाम हो गया॥