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"आये हो वक़्ते-दफ़्न तो शाना हिला के जाती बहार / साक़िब लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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23:07, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण


आये हो वक़्ते-दफ़्न तो शाना हिला के जाओ।
आँख उसकी लग गई है, जिसे इन्तेज़ार था॥

मैयत तो उठ गई वो न आये नहीं सही।
‘साक़िब’ किसी के दिल पै, कोई अख़्तियार था?