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"वो आँख ज़बान हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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23:09, 9 सितम्बर 2009 का अवतरण

वो आँख ज़बान हो गई है
हर बज़्म की जान हो गई है।

आँखें पड़ती है मयकदों की, वो आँख जवान हो गयी है।

आईना दिखा दिया ये किसने, दुनिया हैरान हो गयी है।

उस नरगिसे-नाज़ में थी जो बात, शाएर की ज़बान हो गयी है।

अब तो तेरी हर निगाहे-काफ़िर, ईमान की जान हो गयी है।

तरग़ीबे-गुनाह<ref>पाप की ओर उकसाना</ref> लहज़ह-लहज़ह,<ref>क्षण-प्रतिक्षण</ref> अब रात जवान हो गयी है।

तौफ़ीके - नज़र से मुश्किले-ज़ीस्त, कितनी आसान हो गयी है।


शब्दार्थ
<references/>