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"महशर में कोई पूछनेवाला तो मिल गया / साक़िब लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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23:16, 9 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण


महशर में कोई पूछनेवाला तो मिल गया।
रहमत बड़ी है मुझ को गुनहगार देखकर॥

उन दोस्तों में वो न हों या रब! जो वक़्ते-दीद।
बीमार हो गये रुख़े-बीमार देखकर॥