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"ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात / साक़िब लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात।
जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥
कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म।
चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो गईं॥