भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जले जंगल का इतिहास / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल }} <poem>...)
(कोई अंतर नहीं)

16:15, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण

सुबह से
वही अधजले एक पँख वाली मैना
बार-बार आती है
जले ठूंठ पर मंडराती है
चिचलाती है
और् उड़ जाती है

लौटती है
फिर-फिर वह लौटती है
बैठती है ढ़ारे के काले टीन की छत पर
उसकी गोल घूमती तरल आँख
मुझ पर नहीं टिकती

उस दिन जब जंगल में आग लगी
उसके नन्हें बच्चे
जलती चिंगारियां बनकर
हवाओं में उड़ गए
फिज़ाओं में बिखर गए

शाम की ठण्डक में
धीमा-धीमा रुदन करती
बहती है
उदास हवा
काले कंटीले इस अंचल पर
तीन अवशेष शेष हैं :
सन्नाटा
ठूंठ
और राख़
बस इतना-सा है
इस जले जंगल का इतिहास।