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18:41, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण
कहा नाग ने:
नागमणि री !
हम-तुम दोनों एक रूप है
सजनी,क्योंकि
नाम तेरे में
मेरे नाम का
मूक समर्पण आन मिला है
तेरी तरल आत्मा में तो
मेरे विष का सत्य ढला है
यदा-कदा मैं छोड़ूं कैंचुल
नया जनम होता है मेरा
तब लगता है
तुम्हीं अमर हो
उस पल सखी री
दांत गाड़कर___ विष-थैली ही भले लुटाकर
मन कहता है
उलट जाऊँ मैं
फिसलन की अंधी राहों पर
तुम मेरी उजली साथिन हो
आंख में विष की लपट जलाकर
इन राहों पर करूं रोशनी
प्रतिकार की टीस मेरी को
सदा किया है पैना तुमने
घृणा जगाई----अलख़ सरीखी
नागमणि रे !
मेरे सगले तप की अग्नि
साक्षात तुम में आ बैठी
तुम वह शिव परिणाम अनूठा
जिसको पाने को हर कोई
विष घोले है।