भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात / मीर तक़ी 'मीर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात<br> | होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात<br> | ||
− | पर हम से तो थमी न कभू | + | पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात<br><br> |
कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक<br> | कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक<br> |
18:33, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण
होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात
पर हम से तो थमी न कभू मुँह पे आई बात
कहते थे उस से मिलते तो क्या-क्या न कहते लेक
वो आ गया तो सामने उस के न आई बात
बुलबुल के बोलने में सब अंदाज़ हैं मेरे
पोशीदा क्या रही है किसु की उड़ाई बात
इक दिन कहा था ये के ख़ामोशी में है वक़ार
सो मुझ से ही सुख़न नहीं मैं जो बताई बात
अब मुझ ज़ैफ़-ओ-ज़ार को मत कुछ कहा करो
जाती नहीं है मुझ से किसु की उठाई बात