भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरज़ू लखनवी }} <poem> जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं। ...)
(कोई अंतर नहीं)

14:05, 15 सितम्बर 2009 का अवतरण


जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं।
सर को दो-दो पहर यह धुनते हैं॥

कै़द में माजरा-ए-तनहाई।
आप कहते हैं, आप सुनते हैं॥

झूठे वादों का भी यकीन आ जाये।
कुछ वो इन तेवरों से कहते हैं॥