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"मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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14:08, 15 सितम्बर 2009 का अवतरण


मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं।
हाँ आप इक ऐसे हैं कि ख़ूश होके उठे हैं॥

मुँह उठके तो सब धोते हैं ऐ दीदये-खूंबाज़।
बिस्तर से हम उठे हैं तो मुँह धोके उठे हैं॥