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"गीत का रचाव / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'" के अवतरणों में अंतर

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शायद कुछ खोज रहा गीत का रचाव
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मुग्ध मानस का भाव
  
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पायल के साथ जगी शर्मीली भोर
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कुहकन की भाषा में मुस्काया मोर
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बैठकर मुंडेरे पर बोल गया काग
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जाग उठे हरियाली मेंहदी के भाग
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धूसर पगडंडी से जा लगे नयन
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झुकी झुकी लजियाती पलक का झुकाव
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शायद यह खोज रहा गीत का रचाव
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कांपती हथेली पर जूठन की प्लेट
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भूल गयी टीसती पसलियों की चोट
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सुना बहुत गंध भरे सपनों का शोर
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जानें कब कटी मुग्ध सपनों की डोर
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पांव बने गरियाती मेजों की टांग
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पांखी से बतियाता मन का फैलाव
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शायद यह खोज रहा गीत का रचाव
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पथरीली चोटी पर बर्फीली सेज
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सागर में सूरज की काया का तेज
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केसरिया पाग बंधेभानु का प्रताप
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चांदी की रातों का मुक्त मुक्त व्याप
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वासंती गोधूली सतरंगा मन
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फैली हरियाली पर मोती की आव
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शायद यह खोज रहा गीत का रचाव
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दुग्धसनी मुस्कानें विहंसते कपोल
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चुम्बन के तारों पर नाचे भूगोल
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इस्पाती चाहों ने सिंधु को मथा
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झुर्री की आंखों में राम की कथा
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अनुभव की आंख और जगबीते बोल
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आठ- आठ कांधों पर देह का दबाव
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शायद यह खोज रहा गीत का रचाव
 
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18:50, 15 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

शायद कुछ खोज रहा गीत का रचाव
अंतर का स्राव
मुग्ध मानस का भाव

पायल के साथ जगी शर्मीली भोर
कुहकन की भाषा में मुस्काया मोर
बैठकर मुंडेरे पर बोल गया काग
जाग उठे हरियाली मेंहदी के भाग
धूसर पगडंडी से जा लगे नयन
झुकी झुकी लजियाती पलक का झुकाव
शायद यह खोज रहा गीत का रचाव

कांपती हथेली पर जूठन की प्लेट
भूल गयी टीसती पसलियों की चोट
सुना बहुत गंध भरे सपनों का शोर
जानें कब कटी मुग्ध सपनों की डोर
पांव बने गरियाती मेजों की टांग
पांखी से बतियाता मन का फैलाव
शायद यह खोज रहा गीत का रचाव

पथरीली चोटी पर बर्फीली सेज
सागर में सूरज की काया का तेज
केसरिया पाग बंधेभानु का प्रताप
चांदी की रातों का मुक्त मुक्त व्याप
वासंती गोधूली सतरंगा मन
फैली हरियाली पर मोती की आव
शायद यह खोज रहा गीत का रचाव

दुग्धसनी मुस्कानें विहंसते कपोल
चुम्बन के तारों पर नाचे भूगोल
इस्पाती चाहों ने सिंधु को मथा
झुर्री की आंखों में राम की कथा
अनुभव की आंख और जगबीते बोल
आठ- आठ कांधों पर देह का दबाव
शायद यह खोज रहा गीत का रचाव