भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विवेकानंद दोहे / राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर' |संग्रह= }} <poem> </poem>) |
|||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | उठो, जगो, आगे बढ़ो, पाओ जीवन-साध्य। | ||
+ | तुमने कहा कि राष्ट्र ही, एकमेव आराध्य।। | ||
+ | साँस-साँस में राष्ट्रहित, शब्द-शब्द में ज्ञान। | ||
+ | राष्ट्रवेदिका पर किए, अर्पित तन मन प्राण।। | ||
+ | |||
+ | सत्य और संस्कृति हुए, पाकर तुम्हें महान। | ||
+ | कदम मिलाकर चल पड़े, धर्म और विज्ञान।। | ||
+ | |||
+ | देव संस्कृति का किया, तप-तप कर उत्थान। | ||
+ | करता है दिककाल भी, ॠषि तेरा जयगान।। | ||
+ | |||
+ | अनथक यात्री ने कभी, लिया नहीं विश्राम। | ||
+ | दिशा-दिशा के वक्ष पर, लिखा तुम्हारा नाम।। | ||
+ | |||
+ | रोम-रोम पुलकित हुआ, गाकर दिव्य चरित्र। | ||
+ | जन्म तुम्हें देकर हुई, भारत भूमि पवित्र।। | ||
+ | |||
+ | संत विवेकानंद तुम, शुभ-संस्कृति का कोष। | ||
+ | गुँजा दिया इस सृष्टि में, भारत का जय घोष।। | ||
</poem> | </poem> |
18:50, 15 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
उठो, जगो, आगे बढ़ो, पाओ जीवन-साध्य।
तुमने कहा कि राष्ट्र ही, एकमेव आराध्य।।
साँस-साँस में राष्ट्रहित, शब्द-शब्द में ज्ञान।
राष्ट्रवेदिका पर किए, अर्पित तन मन प्राण।।
सत्य और संस्कृति हुए, पाकर तुम्हें महान।
कदम मिलाकर चल पड़े, धर्म और विज्ञान।।
देव संस्कृति का किया, तप-तप कर उत्थान।
करता है दिककाल भी, ॠषि तेरा जयगान।।
अनथक यात्री ने कभी, लिया नहीं विश्राम।
दिशा-दिशा के वक्ष पर, लिखा तुम्हारा नाम।।
रोम-रोम पुलकित हुआ, गाकर दिव्य चरित्र।
जन्म तुम्हें देकर हुई, भारत भूमि पवित्र।।
संत विवेकानंद तुम, शुभ-संस्कृति का कोष।
गुँजा दिया इस सृष्टि में, भारत का जय घोष।।