"भीड़-भाड़ में / मुकुट बिहारी सरोज" के अवतरणों में अंतर
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भीड़-भाड़ में चलना क्या? | भीड़-भाड़ में चलना क्या? | ||
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कुछ हटके-हटके चलो | कुछ हटके-हटके चलो | ||
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वह भी क्या प्रस्थान कि जिसकी अपनी जगह न हो | वह भी क्या प्रस्थान कि जिसकी अपनी जगह न हो | ||
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हो न ज़रूरत, बेहद जिसकी, कोई वजह न हो, | हो न ज़रूरत, बेहद जिसकी, कोई वजह न हो, | ||
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एक-दूसरे को धकेलते, चले भीड़ में से- | एक-दूसरे को धकेलते, चले भीड़ में से- | ||
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बेहतर था, वे लोग निकलते नहीं नीड़ में से | बेहतर था, वे लोग निकलते नहीं नीड़ में से | ||
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दूर चलो तो चलो | दूर चलो तो चलो | ||
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भले कुछ भटके-भटके चलो | भले कुछ भटके-भटके चलो | ||
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तुमको क्या लेना-देना ऐसे जनमत से है | तुमको क्या लेना-देना ऐसे जनमत से है | ||
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खतरा जिसको रोज, स्वयं के ही बहुमत से है | खतरा जिसको रोज, स्वयं के ही बहुमत से है | ||
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जिसके पांव पराये हैं जो मन से पास नहीं | जिसके पांव पराये हैं जो मन से पास नहीं | ||
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घटना बन सकते हैं वे, लेकिन इतिहास नहीं | घटना बन सकते हैं वे, लेकिन इतिहास नहीं | ||
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भले नहीं सुविधा से - | भले नहीं सुविधा से - | ||
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चाहे, अटके-अटके चलो | चाहे, अटके-अटके चलो | ||
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जिनका अपने संचालन में अपना हाथ न हो | जिनका अपने संचालन में अपना हाथ न हो | ||
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जनम-जनम रह जायें अकेले, उनका साथ न हो | जनम-जनम रह जायें अकेले, उनका साथ न हो | ||
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समुदायों में झुण्डों में, जो लोग नहीं घूमे | समुदायों में झुण्डों में, जो लोग नहीं घूमे | ||
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मैंने ऐसा सुना है कि उनके पांव गये चूमे | मैंने ऐसा सुना है कि उनके पांव गये चूमे | ||
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समय, संजोए नहीं आंख में, | समय, संजोए नहीं आंख में, | ||
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खटके, खटके चलो. | खटके, खटके चलो. |
09:38, 30 अक्टूबर 2006 का अवतरण
कवि: मुकुट बिहारी सरोज
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भीड़-भाड़ में चलना क्या?
कुछ हटके-हटके चलो
वह भी क्या प्रस्थान कि जिसकी अपनी जगह न हो
हो न ज़रूरत, बेहद जिसकी, कोई वजह न हो,
एक-दूसरे को धकेलते, चले भीड़ में से-
बेहतर था, वे लोग निकलते नहीं नीड़ में से
दूर चलो तो चलो
भले कुछ भटके-भटके चलो
तुमको क्या लेना-देना ऐसे जनमत से है
खतरा जिसको रोज, स्वयं के ही बहुमत से है
जिसके पांव पराये हैं जो मन से पास नहीं
घटना बन सकते हैं वे, लेकिन इतिहास नहीं
भले नहीं सुविधा से -
चाहे, अटके-अटके चलो
जिनका अपने संचालन में अपना हाथ न हो
जनम-जनम रह जायें अकेले, उनका साथ न हो
समुदायों में झुण्डों में, जो लोग नहीं घूमे
मैंने ऐसा सुना है कि उनके पांव गये चूमे
समय, संजोए नहीं आंख में,
खटके, खटके चलो.