भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सपनों की सर्द आह / माधव कौशिक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माधव कौशिक |संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव क...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:48, 16 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
सपनों की सर्द आह पर कुछ भी नहीं लिखा
हमने बदन की चाह पर कुछ भी नहीं लिखा ।
खाली पड़ा है आज भी चाहत का हाशिया
तुमने मेरी चाहत पर कुछ भी नहीं लिखा ।
करते ही जिस गुनाह को जन्नत के दर खुलें
लोगों ने उस गुनाह पर कुछ भी नहीं लिखा ।
तलुवों से रिसकर ख़ून के क़तरे जवां हुए
मंज़िल ने फिर भी राह पर कुछ भी नहीं लिखा ।
दरबारियों को याद हैं क़िस्से कनीज़ के
मौसम ने बादशाह पर कुछ भी नहीं लिखा ।
फूलों के शेर वक़्त से पहले बिखर गए
ख़ुश्बू ने उस निगाह पर कुछ भी नहीं लिखा ।