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"इंतज़ार-ए-बहार / रंजना भाटिया" के अवतरणों में अंतर

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22:42, 16 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण

भरी सावन की बदरी
नैनों में ..
चाहत में छिपा
बंसत ..
सर्द हैं आहें
गर्म सी नरमी
बाँहों में
मौसम का हर रूप
छिपा है यहीं
इन नजरों में
और इनको
समझने को
एक बार तो
नजरों के रस्ते से
तुम्हें गुज़रना होगा